अकबर ने बीरबल के सामने उड़ाया तुलसी का मजाक
अकबर ने जब किया तुलसी का अपमान, तब बीरबल ने अकबर को सबक सिखाया
एक बार की बात हैं, शहंशाह अकबर और उनके मंत्री बीरबल हमेशा की तरह साथ में टहलने जा रहे थे। बीरबल को रास्ते में एक तुलसी का पौधा दिखा, तब मंत्री बीरबल ने झुक कर तुलसी के पौधे को प्रणाम किया। इस तरह पौधे को प्रणाम करते देख शहंशाह अकबर ने पूछा ये पौधा कौन हे ये ?
तब बीरबल ने जवाब दिया, यह कोई मामूली पौधा नहीं मेरी तुलसी माता है। बीरबल के जवाब को सुन अकबर ने बीरबल को चिढ़ाने के लिए तुलसी के पौधे को उखाड़ कर फेक दिया और बोला कितनी माता हैं तुम हिन्दू लोगो की ?
इस पर बीरबल को उसका जबाब देने की एक तरकीब सूझी। आगे एक बिच्छुपत्ती (खुजली वाला) झाड़ मिला, बीरबल उसे दंडवत प्रणाम कर, कहा – प्रणाम पिताश्री और जय हो बाप मेरे ।
अकबर को यह देख गुस्सा आया और दोनों हाथों से खुजली वाले झाड़ को उखाड़ने लगा। इतने में अकबर को हाथो में भयंकर खुजली होने लगी, तो शहंशाह अकबर बोला: बीरबल ये क्या हो गया ?
बीरबल ने कहा : आप ने मेरी माँ को मारा इस लिए ये मेरे पिताजी आप पर गुस्सा हो गए । शहंशाह अकबर जहाँ भी हाथ लगता वहाँ पर उसे खुजली होने लगती।
अकबर को शरीर में पीड़ा होने लगी तब अकबर बीरबल से बोला : मंत्री बीरबल जल्दी कोई उपाय बताओ, मेरे शरीर में भयानक कष्ट हो रहा हैं पुरे बदन पर खुजली हो रही हैं।
बीरबल बोला : उपाय तो है लेकिन वो भी हमारी माँ है, उनसे विनती करनी पड़ेगी । अकबर बोला : कुछ भी करो पर जल्दी करो।
बीरबल के सामने गाय खड़ी थी, उसे देख बीरबल ने अकबर से कहा की शहंशाह अकबर आप दोनों हाथो को जोड़ कर प्रणाम करो और गौमाता से से विनती करो कि हे माता, मेरे शरीर में भयानक कष्ट हो रहा हे इसकी दवाई दो ?
अकबर ने ऐसा ही किया, तभी गाय ने गोबर कर दिया। बीरबल ने अकबर से कहा की जहापनाह आप गोबर का पुरे शरीर में लेप करो और उसके पश्चात्के स्नान करो। शरीर पर गोबर का लेप करने से अकबर को फौरन खुजली से राहत मिल गई ।
अकबर बोला : बीरबल अब क्या राजमहल में ऐसे ही जायेंगे ? बीरबल ने कहा : नहीं बादशाह हमारी एक और माँ है । सामने गंगा बह रही थी । आप बोलिए हर हर गंगे .
जय गंगा मईया की .. और कूद जाइए ।
नहा कर अपने आप को तरोताजा महसूस करते हुए अकबर ने गंगा मैया को नमन किया तो बीरबल ने अकबर से कहा “महाराज ये तुलसी माता, गौ माता, गंगा माता तो जगत जननी है सबकी माता हैं बिना भेदभाव सबका कल्याण करने वाली हैं । इनको मानने वालों को ही “हिन्दू” कहते हैं।
हिन्दू एक “संस्कृति” है! “सभ्यता” है! सम्प्रदाय नहीं ! गौ, गंगा, गीता और गायत्री का सम्मान कीजिये, ये सनातन संस्कृति के प्राण स्तंभ हैं!
Source : अज्ञात