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Dhanteras katha धनतेरस की पौराणिक कथा

आज हम लोग धनतेरस से जुड़ी हुई पौराणिक कथा लेकर आए हैं, चलिए जानते हैं किस प्रकार हुई धनतेरस मनाने की शुरूआत

इस साल अक्तूबर माह की 22-23 अक्तूबर 2022 को धनतेरस का त्यौहार पुरे भारत सहित विदेशों में भी मनाया जा रहा है.जिसमे धनतेरस कथा Dhanteras katha सुनी और सुनाई जाती है.

धनतेरस के विशेष मौके पर newsmerchants अपने पाठकों के लिए धनतेरस की पौराणिक कथा Dhanteras katha लेकर आया है.

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Dhanteras katha पर्व की पौराणिक कथा

Dhanteras katha के अनुसार एक बार भगवान नारायण यानि विष्णु ने धरती लोक में विचरण करने का निश्चय किया, जब उन्होंने यह बात लक्ष्मी जी को बताई, तो उन्होंने भी साथ में चलने का आग्रह किया। तब विष्णु जी ने कहा कि, “अगर तुम मेरे साथ चलना चाहती हो तो तुम्हें मेरी आज्ञा का पालन करना होगा और मेरे कहा मानना पड़ेगा।”

Dhanteras katha के अनुसार लक्ष्मी जी ने भगवान विष्णु की शर्त मान ली और उनके साथ धरती पर विचरण करने निकल पड़ीं। धरती पर पहुंचने के बाद, भगवान विष्णु और लक्ष्मी जी एक जगह रुके और वहां विष्णु जी ने उनसे कहा कि, “मैं दक्षिण दिशा की ओर जा रहा हूँ, जब तक मैं न आऊं,तुम कहीं मत जाना। ”

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विष्णु जी के जाने पर लक्ष्मी जी के मन में यह जिज्ञासा पैदा हो गई कि आखिरकार दक्षिण दिशा में ऐसा क्या है जो स्वामी मुझे उनके पीछे आने के लिए मना कर रहे हैं।लक्ष्मी जी से रहा नहीं गया और अपनी जिज्ञासा को शांत कर करने के लिए वह भी विष्णु जी के पीछे-पीछे चल पड़ीं।

Dhanteras katha के अनुसार थोड़ी दूर जाने पर, उन्हें सरसों का एक खेत दिखाई पड़ा, जिसमें पीले फूल खिले हुए थे, सरसों के फूलों की सुंदरता देखकर, माता लक्ष्मी मंत्रमुग्ध हो गईं और उन्हें तोड़कर अपना श्रृंगार करने लगीं। इसके बाद थोड़ा और चलने पर, उन्हें एक गन्ने का खेत दिखाई दिया। लक्ष्मी जी ने गन्ने तोड़े और उसका रस पीने लगीं। उसी क्षण भगवान विष्णु जी वहां प्रकट हो गए।

Dhanteras katha अनुसार विष्णु जी लक्ष्मी जी को खेतों ने देखकर उन पर क्रोधित हो गए और बोले, मैं तुम्हें इधर आने से मना किया था पर तुम नहीं मानी और किसान के खेत में चोरी का अपराध भी कर बैठी।

अब तुम्हें इस अपराध से मुक्ति पाने के लिए इस किसान की 12 सालों तक सेवा करनी पड़ेगी। ऐसा कहकर भगवान उन्हें वहां छोड़कर क्षीर सागर लौट गए।

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Dhanteras katha अनुसार लक्ष्मी जी उस गरीब किसान के घर में भेष बदलकर रहने लगीं। एक दिन लक्ष्मी जी ने उस किसान की पत्नी से कहा कि तुम स्नान करके पहले मेरे द्वारा बनाई गई लक्ष्मी जी की प्रतिमा का पूजन करो और उसके बाद रसोई में भोजन बनाओं। तुम पूजा में देवी से सच्चे मन से जो भी मांगोगी, वह तुम्हें मिल जाएगा।

किसान की पत्नी ने ऐसा ही किया, Dhanteras katha अनुसार लक्ष्मी जी की पूजा के फलस्वरूप किसान का घर धन-धान्य के परिपूर्ण हो गया। लक्ष्मी जी की कृपा से किसान को सभी सुखों और समृद्धि की प्राप्ति हुई। इस प्रकार किसान के 12 वर्ष आनंदपूर्वक कट गए।

12 वर्षों के बाद, लक्ष्मी जी वहां से जाने के लिए तैयार हो गईं और विष्णु जी उन्हें वापिस ले जाने के लिए प्रकट हो गए। किसान ने उन्हें भेजने से मना कर दिया। इस पर भगवान विष्णु बोले, “इन्हें कौन जाने देना चाहता है, लेकिन यह एक जगह नहीं ठहरतीं, मेरे श्राप के कारण यह 12 वर्षों से तुम्हारी सेवा कर रही थीं और अब इनके जाने का समय हो गया है।”

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Dhanteras katha अनुसार किसान हटपूर्वक बोला कि मैं लक्ष्मी जी को नहीं जाने दूंगा। इस संवाद में लक्ष्मी जी किसान से बोलीं कि, “यदि तुम चाहते हो कि तुम्हारे घर में हमेशा मेरा वास हो तो मैं जैसा कह रही हूं, तुम ठीक वैसा ही करना। कल तेरस है, तुम घर को लीप-पोतकर स्वच्छ कर लेना। रात्रि में घी का दीपक जला कर रखना, शाम के समय पूजन करना और एक तांबे के कलश में कुछ सिक्के भरकर रख देना, मैं उस कलश में निवास करूंगी, किंतु मैं तुम्हें दिखाई नहीं दूंगी। इस एक दिन की पूजा से तुम्हारे घर में सदैव निवास करूंगी।”

ऐसा कहकर लक्ष्मी जी अंतर्ध्यान हो गईं। किसान ने लक्ष्मी जी के कहे अनुसार, उनका विधि पूर्वक पूजन किया।

Dhanteras katha अनुसार मान्यता है कि तभी से धनतेरस के दिन लक्ष्मी जी की पूजा होती है और धनतेरस का त्यौहार मनाया जाता है।

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