धर्म

vakrtunda वक्रतुण्ड से कैसे मिला मत्सरासुर को क्षमादान ?

भगवान गणेश के वक्रतुंड vakrtunda अवतार की कथा हमें बताती है कि अहंकार और ईर्ष्या से कभी किसी का भला नहीं होता। इसलिए मनुष्य को इन अवगुणों से अपनी दूरी बनाए रखनी चाहिए।

” वक्रतुंडावतारश्च देहानां ब्रह्मधारकः

मत्सरासुरहन्ता स सिंहवाहन: स्मृतः “

अर्थात, गणेश जी का यह अवतार ब्रह्म स्वरूप से अपने सम्पूर्ण शरीर को धारण करने वाला है तथा उनके वाहन सिंह है। इस अवतार में उनके द्वारा मत्सरासुर का संहार हुआ था। भगवान गणेश के प्रथम अवतार वक्रतुण्ड vakrtundaका अर्थ है, ‘मुड़ी हुई सूंड’।

इंद्र के प्रमाद से मत्सरासुर की उत्पत्ति:

गणेश जी के इस अवतार की माहात्म्य कथा का वर्णन गणेश पुराण, मुद्गल पुराण और गणेश अंक जैसे धार्मिक ग्रंथों में मिलता है। गणेश पुराण में वर्णित कथा के अनुसार, एक बार देवराज इंद्र के प्रमाद से एक भयंकर असुर की उत्पत्ति हुई थी। मद से हुई उत्पत्ति के कारण, उस असुर का नाम मत्सरासुर पड़ा और उसकी शक्ति भी दिन प्रति दिन बढ़ रही थी।

जन्म के बाद मत्सरासुर, राक्षसों के गुरु शुक्राचार्य के पास गया और उनसे पूछा कि “मैं किस देवता की आराधना करूं? जिससे मेरी शक्तियों में और वृद्धि हो और मैं तीनों लोकों का स्वामी बन सकूँ?” इस पर दैत्यगुरु शुक्राचार्य ने मत्सरासुर को भगवान शिव की आराधना हेतु उनके पंचाक्षर मंत्र,

‘ॐ नमः शिवाय’ का जाप करने के लिए कहा। मत्सरासुर पंचाक्षर मंत्र पाकर बहुत प्रसन्न हुआ और एक निर्जन वन में जाकर, भगवान शिव की कठोर तपस्या में लीन हो गया।

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मत्सरासुर की तपस्या:

हजारों वर्ष तक निर्जल और निराहार रहकर भगवान शिव की तपस्या करते हुए मत्सरासुर ने ‘ॐ नमः शिवाय’ का जाप किया। उसकी ऐसी कठोर तपस्या से महादेव अत्यंत प्रसन्न हुए और उन्होंने मत्सरासुर को साक्षात दर्शन देते हुए, उसे मनोवांछित वर मांगने को कहा। मत्सरासुर ने तब महादेव से वरदान मांगते हुए कहा, “हे प्रभु! आपकी महिमा अपरंपार है। कृपया मुझे ऐसा वर दें, ताकि कोई भी देवता या असुर मेरा संहार कभी ना कर सके।”

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मत्सरासुर को उसका मनोवांछित वर देकर, भगवान शिव वहाँ से अन्तर्धान हो गए। इधर, वरदान पाकर मत्सरासुर दैत्यगुरु शुक्राचार्य के पास गया और उन्हें सारा वृत्तांत सुनाया। पूरा वृतांत सुनकर, शुक्राचार्य भी अत्यंत प्रसन्न हुए और उन्होंने मत्सरासुर को दैत्यराज के पद पर स्थापित करके, उसका अभिषेक किया।

शिवजी के वरदान से मत्सरासुर की त्रैलोक्य विजय:

भगवान शिव से वरदान प्राप्त करने के बाद मत्सरासुर के अत्याचारों ने जैसे सारी सीमाएं पार कर दीं। मत्सरासुर ने अपनी दैत्य सेना के साथ मिलकर धीरे-धीरे पृथ्वीलोक के सभी राजाओं को पराजित करते हुए समस्त लोक पर अपना अधिकार स्थापित किया। इसके बाद, उसने देवलोक की ओर प्रस्थान करते हुए, हुए, सभी देवताओं को भी अपने अधीन कर लिया।

मत्सरासुर को महादेव से मिले वरदान के कारण, किसी भी देवता के लिए उसका सामना कर पाना, संभव नहीं हो रहा था। देखते ही देखते मत्सरासुर ने धरती, पाताल, नागलोक और समस्त देवलोक पर अपना कब्जा जमा लिया। उसके हृदय में अहंकार और ईर्ष्या की भावना इतनी बढ़ गई थी, कि उसने अब महादेव को अपने अधीन करने की सोची और कैलाश पर भी अपना कब्जा करने के लिए निकल पड़ा।

देवताओं को गं मंत्र जाप का उपदेश:

इधर, सभी देवता उसके अत्याचारों से परेशान होकर ब्रह्माजी के पास पहुंचे और उनसे इस समस्या का कोई हल निकालने का आग्रह किया। देवताओं की विनती सुनकर ब्रह्मा ने कहा, हम विष्णुजी के पास चलकर उनकी प्रार्थना करेंगे| विष्णुजी ने सभी देवताओंकी बात सुनकर कहा,“इस गंभीर समस्या का हल केवल वहीं बता सकते हैं, जिनके दिए वरदान के कारण इस समस्या की उत्पत्ति हुई है। तो आइए हम सभी पशुपतिनाथ की शरण में जाकर,उनसे कृपा की प्रार्थना करें।”

जब सभी देवता, ब्रह्मा और विष्णु के साथ मिलकर कैलाश पहुँचे, तब महादेव माता पार्वती के साथ रत्नासन पर आसीन थे। तब सभी देवताओं ने महादेव और माता पार्वती को प्रणाम किया और उन्हें पूरा वृत्तांत सुनाया। पूरा वृत्तांत सुनने के बाद महादेव ने सभी देवताओं को काल की प्रतीक्षा करने का सुझाव दिया| कुछ समय बाद मत्सरासुर ने कैलाश पर भी अपना राज्य स्थापित किया |

एक दिन किसी गोपनीय स्थान पर सब देवता मिलकर मत्सरासुर को मारने के विषय में चर्चा कर रहे थे| उसी वक्त भगवान दत्तात्रेय वहा पहुँचे| सभी देवताओं के कष्ट सुनकर उन्होंने उनसे भगवान गणेश के वक्रतुण्ड स्वरूप का आह्वान करने के लिए कहा।

साथ ही उनको गणेशजी का एकाक्षरी ‘गं’ मंत्र का जपानुष्ठान करने की सलाह दी| सभी देवताओं ने अनुष्ठान शुरू किया। उनकी आराधना से प्रसन्न होकर गणेश जी ने वक्रतुण्ड vakrtunda अवतार में देवताओं को दर्शन दिए| सभी देवताओंकी प्रार्थना सुनकर वक्रतुण्ड ने उनको अभय देकर कहा,“में अवश्य ही मत्सरासुर का गर्वहरण करूँगा |”

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मत्सरासुर और वक्रतुण्ड का घमासान युद्ध:

वक्रतुण्ड vakrtunda ने समस्त गणोंकी और देवताओंकी सेना लेकर मत्सरासुर की राजधानी को घेर लिया| उसके बाद भयंकर युद्ध छिड़ गया| बहुत से दैत्य रथी, महारथी, गजारूढ़, अश्वारूढ़ प्रमुख वीर मारे गये |गणों और दैत्यों दोन्हों पक्षों को भारी क्षति उठानी पड़ी|

इस प्रकार लगातार पांच दिनों तक युद्ध चलता रहा| एक दिन गणों द्वारा मत्सरासुर के दो पुत्रों का वध हुआ| अपने दो पुत्रों को खोने के बाद मत्सरासुर व्याकुल होकर युद्धस्थल छोड़ चला गया |

उसके कुछ दिन बाद उसने फिर युद्ध आरंभ किया| किन्तु युद्ध के दौरान मत्सरासुर को ऐसा लगने लगा कि वक्रतुण्ड vakrtunda को हरा पाना असंभव है और अगर यह युद्ध ऐसे ही चलता रहा, तो उसकी मृत्यु भी निश्चित है। ये सोचकर वह भगवान गणेश की शरण में पहुंचा और हार मान ली। जिसके बाद भगवान वक्रतुंड ने उसे क्षमा दान देते हुए अपनी शरणागति दे दी। तब से मत्सरासुर भगवान गणेश का अनन्य भक्त बन गया।

गणेश पुराण में इस बात का भी उल्लेख मिलता है कि कालांतर में पृथ्वी पर दम्भासुर नाम के एक दुष्ट राक्षस का जन्म हुआ था। जो तीनों लोकों पर विजय प्राप्त करने के लिए उसने राजाओं और देवताओं पर अत्याचार करना शुरू किया तो उसका दमन करने के लिए भगवान गणेश ने एक बार फिर वक्रतुण्ड vakrtunda का अवतार लिया।

भगवान गणेश को बुद्धि, धन और सौभाग्य का देवता माना जाता है। उनके वक्रतुण्ड अवतार के पूजन से, मनुष्य को अत्यंत लाभ होता है। प्रत्येक वर्ष भाद्रपद महीने के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी को गणेश उत्सव की शुरुआत होती है। इस दौरान, पूरे देश में भगवान गणेश की पूजा बड़े धूम-धाम से की जाती है। मान्यता यह भी है, कि काशी के दशाश्वमेध घाट से कुछ दूरी पर भगवान गणेश के वक्रतुंड vakrtunda अवतार का एक मंदिर स्थित है। यहाँ देश के विभिन्न इलाकों से लोग, भगवान वक्रतुणड के दर्शन और स्तुति हेतु आते हैं।

भगवान गणेश के वक्रतुंड vakrtunda अवतार की कथा हमें बताती है कि अहंकार और ईर्ष्या से कभी किसी का भला नहीं होता। इसलिए मनुष्य को इन अवगुणों से अपनी दूरी बनाए रखनी चाहिए। जिस प्रकार अपने अहंकार और ईर्ष्या के कारण मत्सरासुर ने भगवान शिव से वरदान पाकर, उन्हीं को अपने अधीन करने का दुस्साहस किया और उसे अपने दोनों प्रिय पुत्रों को खोना पड़ा| उसी प्रकार मनुष्य भी अहंकार में आकर अपने प्रिय चीजों को खो देता है।

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