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SANGH PRAMUKH: आखिर क्यों मातृशक्ति के योगदान को महत्वपूर्ण मानते है ?

भारत को विश्वगुरु बनाने के लिए मातृशक्ति के योगदान को महत्वपूर्ण मानते है संघ प्रमुख (SANGH PRAMUKH)  – कृष्णमोहन झा

शिविर में दिए गए उद्बोधन में संघ प्रमुख(SANGH PRAMUKH) का स्पष्ट मत था कि सनातन एकात्म मानव दृष्टि के आधार पर देखने पर अंदर की पवित्रता ध्यान में आती है। फिर संयम , त्याग, कृतज्ञता, सारे मूल्य,ध्यान में आते हैं। उसके आधार पर हम महिला को माता कह सकते हैं । इसके अलावा कोई दूसरा उपाय नहीं है।

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक मोहन भागवत (SANGH PRAMUKH)और राष्ट्र सेविका समिति की प्रमुख संचालिका शांताक्का ने हाल में ही नागपुर में संघमित्रा सेवा प्रतिष्ठान सेविका प्रकाशन द्वारा प्रकाशित ‘अखिल भारतीय महिला चरित्र कोश – प्रथम खंड प्राचीन भारत’ ग्रंथ का लोकार्पण किया।यह गरिमामय समारोह राष्ट्र सेविका समिति की तृतीय प्रमुख संचालिका स्व. उषा ताई की पुण्य तिथि के अवसर पर आयोजित किया गया ।

लेख की ख़ास बातें 

मातृशक्ति का महत्व – SANGH PRAMUKH
पहले प्रकाशन पर दी बधाई
मातृशक्ति के महत्व और सामर्थ्य
राष्ट्र उत्थान में महिलाओं की भूमिका
वात्सल्य व्यक्तित्व का मूल
संदेश देने की मेरी हैसियत नहीं
महिलाओं को बनाएं प्रबुद्ध और सशक्त

मातृशक्ति का महत्व – SANGH PRAMUKH

संघ प्रमुख (SANGH PRAMUKH) ने इस अवसर पर व्यक्त अपने उद्गारों में भारतीय परंपरा में मातृशक्ति का महत्व प्रतिपादित करते हुए कहा कि कोई भी राष्ट्र महिलाओं की समान भागीदारी के बिना प्रगति नहीं कर सकता। हमारी परंपरा में मातृ शक्ति का जो महत्व प्रदान किया गया है उसे सबको स्वीकार करना चाहिए और उसके अनुरूप आचरण करना चाहिए ।हम भारत को विश्व गुरु बनाने के अभिलाषी हैं परंतु यह कार्य केवल पुरुषों के द्वारा नहीं किया जा सकता । इसमें पुरुषों के बराबर ही महिलाओं की भागीदारी सुनिश्चित करना होगी ।

पहले प्रकाशन पर दी बधाई

संघ प्रमुख (SANGH PRAMUKH) ने कहा कि अखिल महिला चरित्र कोश का अभी पहला खंड प्रकाशित हुआ है जिसमें समाहित सारगर्भित सामग्री से इस ग्रंथ की उपादेयता को भली-भांति समझा जा सकता है। यह प्रसन्नता का विषय है कि आगे चलकर इस ग्रंथ के और भी कई खंड प्रकाशित किए जाएंगे । संघ प्रमुख ने ग्रंथ की विषय वस्तु की सराहना करते हुए कहा कि इसमें सहयोग करने वाली भगिनियों ने अभिनंदनीय कार्य किया है । मैं उनका हार्दिक अभिनन्दन करता हूं।

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मातृशक्ति के महत्व और सामर्थ्य

संघ प्रमुख ने कहा कि गत दो हजार वर्षों में हमारी परंपरा में मातृशक्ति को जो महत्वपूर्ण स्थान प्रदान किया गया उसे हमने विस्मृत कर दिया है। यह ग्रंथ हमारी परंपरा में मातृशक्ति के महत्व और उसकी सामर्थ्य से हमारा परिचय कराता है और उसके अनुरूप आचरण करने की प्रेरणा देता है इसलिए इसे खरीद कर पढ़ा जाना चाहिए ।

राष्ट्र उत्थान में महिलाओं की भूमिका

संघ प्रमुख ने कहा कि किसी भी राष्ट्र की प्रगति में महिलाओं की भूमिका महत्वपूर्ण होती है। समाज में महिलाओं को पुरुषों के बराबरी का दर्जा दिए बिना कोई भी राष्ट्र प्रगति नहीं कर सकता । अपना प्राचीन गौरव हासिल करना है तो हमें राष्ट्र निर्माण में महिलाओं की सक्रिय भागीदारी सुनिश्चित करनी होगी रथ में एक पहिया आगे और एक पहिया पीछे हो या एक पहिया छोटा और एक पहिया बड़ा हो तो उस रथ के गतिशील होने की कल्पना नहीं की जा सकती ।समाज में यही भूमिका महिला और पुरुष की होती है ।यही हमारी परंपरा है। हमारे यहां यह विवाद नहीं है कि पुरुष और महिला में कौन श्रेष्ठ है। सृष्टि के संचालन के पुरुष और महिला तत्व , दोनों ही समान रूप से आवश्यक हैं इसीलिए बाहर के लोग भारत की कुटुंब व्यवस्था का अध्ययन कर रहे हैं।

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वात्सल्य व्यक्तित्व का मूल

सर संघ चालक ने वात्सल्य को महिलाओं का प्राकृतिक गुण बताते हुए कहा कि यह वात्सल्य महिला के व्यक्तित्व का मूल है। उसके पास वात्सल्य की जो प्राकृतिक संपदा है उसे लुटाए बिना उसे चैन नहीं मिलता। महिलाओं की सामर्थ्य के बारे में भागवत ने कहा कि पुरुषों को महिलाओं के उद्धार की बात करते की आवश्यकता नहीं है। महिलाओं का उद्धार पुरुषों की क्षमता के बाहर की बात है।

संदेश देने की मेरी हैसियत नहीं

इस संबंध में स्वामी विवेकानंद के विचारों का उल्लेख करते हुए उन्होंने कहा कि विवेकानंद के जीवन के एक प्रसंग से इस बात को भली-भांति समझा जा सकता है। एक उनके विदेश प्रवास के दौरान जब उनसे पूछा गया कि महिलाओं के उनका क्या संदेश है तो उन्होंने स्पष्ट कहा था कि महिलाओं को संदेश देने की हैसियत मेरी नहीं है । वो चित्र रूपा है, जगत् जननी है। वह अपना रास्ता खुद जानती है। अपनी मर्यादा को संभालते हुए सार्वजनिक जीवन में महत्वपूर्ण भूमिका का निर्वाह करते समय परिवार को कैसे संभालना है, उसे यह सिखाने की आवश्यकता पुरुषों को नहीं है ।

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महिलाओं को बनाएं प्रबुद्ध और सशक्त

संघ प्रमुख (SANGH PRAMUKH) ने अपने भाषण में इस बात को विशेष रूप से रेखांकित किया कि लंबे समय तक घर की चारदीवारी में रहने के कारण उसे कुछ बातों की जानकारी नहीं है अतः उसे प्रबुद्ध बनाने और सशक्त बनाने की आवश्यकता है। इस बात को ध्यान में रखते हुए उसके साथ व्यवहार करना होगा।

उल्लेखनीय है कि सर संघचालक मोहन भागवत ने विभिन्न अवसरों पर दिए गए अपने सम्बोधनों में मातृशक्ति के महत्व की सारगर्भित विवेचना करते हुए समाज में महिलाओं को पुरुषों के समकक्ष अधिकार और सम्मान प्रदान किए जाने पर जोर दिया है । उनका मानना है कि हमारे देश में महिला विमर्श भारतीय दर्शन के अनुसार होना चाहिए क्योंकि भारतीय विचार परंपरा में महिला और पुरुष को एक दूसरे का पूरक माना गया है।

हमारी पौराणिक कथाओं में यह उल्लेख है कि देवताओं को भी देवी से मांगने की आवश्यकता पड़ी है। भागवत कहते हैं कि महिलाएं जिस प्रकार परिवार का कुशल नेतृत्व करती आई हैं उसी तरह समाज की अनेक गतिविधियों में भी वे नेतृत्व की जिम्मेदारी का सफलतापूर्वक निर्वहन कर रही हैं। पुरुषों के वर्चस्व वाले क्षेत्रों में भी महिलाओं के पास नेतृत्व की बागडोर होना अच्छा संकेत है।

संघ प्रमुख (SANGH PRAMUKH) का स्पष्ट मत है कि महिलाएं राष्ट्र निर्माण में महत्वपूर्ण जिम्मेदारियां निभा रही हैं इसलिए उनके सशक्तिकरण और सम्मान को सुनिश्चित करने के लिए उन्हें मातृशक्ति के रूप में देखा जाना चाहिए। महिलाओं को अपने कल्याण के लिए पुरुषों की ओर देखने के बजाय स्वयं जागृत होना होगा।

संघ प्रमुख (SANGH PRAMUKH) मोहन भागवत ने महिलाओं के सशक्तिकरण और सम्मान की सुरक्षा के लिए समय समय पर जो बहुमूल्य सुझाव दिए हैं उनकी सर्वकालिक प्रासंगिकता से इंकार नहीं किया जा सकता। भागवत ने राष्ट्र सेविका समिति के अखिल भारतीय कार्यकर्ता प्रेरणा शिविर में कहा था कि भारत को परमवैभव संपन्न बनाना है तो भारत की मातृशक्ति का जागरण, सशक्तिकरण और समाज में पुरुषों के समकक्ष योगदान को सभी अनिवार्य मानते हैं ।

इस बात पर भी सभी सहमत हैं कि मातृशक्ति का सशक्तिकरण और मातृशक्ति को उनकी वास्तविक भूमिका में खड़ा करने का कार्य देश के सनातन मूल्यों के आधार पर ही संभव है क्योंकि इन सब विषयों में बाकी दुनिया का अनुभव हमारी तुलना में बहुत कम है।
शिविर में दिए गए उद्बोधन में संघ प्रमुख का स्पष्ट मत था कि सनातन एकात्म मानव दृष्टि के आधार पर देखने पर अंदर की पवित्रता ध्यान में आती है। फिर संयम , त्याग, कृतज्ञता, सारे मूल्य,ध्यान में आते हैं। उसके आधार पर हम महिला को माता कह सकते हैं । इसके अलावा कोई दूसरा उपाय नहीं है।

लेखक मध्यप्रदेश के वरिष्ठ पत्रकार हैं और डिजियाना न्यूज़ समूह के राजनैतिक सलाहकार हैं |

 

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