धर्म

गणेश जी की पूजा में तुलसी क्यों नहीं चढ़ाई जाती, जानें इसके पीछे की वजह।

पुराणों के अनुसार, भगवान विष्णु, राम, और कृष्ण को तुलसी जी का भोग लगाने से वे खुश होते हैं और प्रसाद को ग्रहण करते हैं। परंतु, गणेशजी के भोग में तुलसी का प्रयोग वर्जित बताया गया है।

पुराणों के अनुसार, भगवान विष्णु, राम, और कृष्ण को तुलसी जी का भोग लगाने से वे खुश होते हैं और प्रसाद को ग्रहण करते हैं। परंतु, गणेशजी के भोग में तुलसी का प्रयोग वर्जित बताया गया है।

हिन्दू धर्म में किसी भी शुभ कार्य को करने से पहले भगवान श्री गणेश की पूजा की जाती है और गणेश चतुर्थी पर 10 दिनों के लिए घर में श्री गणेश जी की स्थापना की जाती है। गणेश जी की पूजा में दूर्वा, फूल और शमी पत्ते आदि चढ़ाएं जाते हैं, लेकिन गणेश पूजा में कभी तुलसी का उपयोग नहीं किया जाता। यदि आपके मन में यह सवाल आ रहा है कि गणेश जी को तुलसी क्यों नहीं चढ़ती? तो जानिए क्या है इसके पीछे की पूरी कथा

कथा के अनुसार, राजा धर्मात्मज की बेटी देवी तुलसी तीर्थयात्रा पर जाने का निर्णय लिया था। तीर्थयात्रा के दौरान, देवी तुलसी ने गणेश जी को देखा, गणेश जी गंगा किनारे तपस्या कर रहे थे। उनके दिव्य स्वरूप को देखकर देवी तुलसी उनकी प्रति आकर्षित हुई और उनसे विवाह करने की इच्छा जताई।पौराणिक कथाओं के अनुसार, राजा धर्मात्मज की बेटी तुलसी एक तीर्थयात्रा पर निकली थी, और उसकी यात्रा के दौरान एक घटना घटी। वह देखी कि गणेश जी गंगा किनारे तपस्या कर रहे थे, और उनके दिव्य स्वरूप को देखकर तुलसी को उनमें आकर्षण हुआ।

गणेश जी के रूप में, उनके शरीर पर चंदन का लेप था, गले में रत्नों की माला हंगी, कमर में रेशम का पीताम्बर था, और वे एक सिंहासन पर बैठकर तपस्या कर रहे थे। देवी तुलसी ने उनके सुंदर स्वरूप को देखकर उनसे आकर्षित हो गई और उनसे विवाह करने की इच्छा जताई।

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गणेश जी ने देवी तुलसी के प्रस्ताव को ठुकरा दिया और कहा कि वे ब्रह्मचारी हैं।  इस पर तुलसी गुस्से में आकर गणेश को श्राप दिया कि वे एक नहीं बल्कि दो बार विवाह करेंगे, और उनका विवाह एक राक्षस से होगा। गणेश जी भी तुलसी के दिए हुए श्राप से क्रोधित हो गएऔर उन्होंने भी तुलसी को श्राप देते हुए कहा कि तुम्हारा विवाह एक असुर से होगा।

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असुर से विवाह होने का श्राप सुनकर तुलसी दुःखी हो गई। तुलसी ने गणेशजी से क्षमा मांगी। तब गणेशजी ने कहा कि तुम्हारा विवाह असुर से होगा, लेकिन तुम भगवान विष्णु को प्रिय रहोगी। तुमने मुझे श्राप दिया है, इस वजह से मेरी पूजा में तुलसी वर्जित ही रहेगी। इसी श्राप के कारण गणेश जी का विवाह रिद्धि और सिद्धि से हुआ और उनके दो पुत्र शुभ और लाभ हुए। कार्तिक मास में तुलसी जी का विवाह शालिग्राम जी के साथ किया जाता है। साथ ही देव-उठावनी एकादशी के दिन इसे तुलसी विवाह के रूप में मनाया जाता है।

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इसके परिणामस्वरूप, गणेश ने तुलसी की पूजा में तुलसी का इस्तेमाल करना अशुभ माना गया है। इसके बाद से ही भगवान गणेश की पूजा में तुलसी को नहीं चढ़ाया जाता है। गणेश जी की प्रसाद में तुलसी चढाने से महापाप लगता है।


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