उज्जैन

ज्योतिर्लिंग महाकालेश्वर पर राजनीति क्यों?

सांसद मंत्री और विधायक ने क्यों साधी चुप्पी?

ज्योतिर्लिंग महाकालेश्वर पर राजनीति क्यों?

क्या निर्णय लेने में प्रबंध समिति हो गई है पंगु?

सांसद मंत्री और विधायक ने क्यों साधी चुप्पी?

क्या महापौर टटवाल ही हैं शहर के फिक्रमंद?

क्या शहर के भक्तों को मिलेगा निःशुल्क भस्म आरती का लाभ?

 

Ujjain Why politics on Jyotirlinga Mahakaleshwar। उज्जैन के विश्व प्रसिद्ध ज्योतिर्लिंग महाकालेश्वर मंदिर में पिछले दिनों महाकाल लोक में सप्त ऋषियों की 7 में से 6 मूर्तियों के आंधी में गिरकर टूटने का वीडियो क्या वायरल हुआ पूरे देश में महाकाल लोक को लेकर कांग्रेस एक्टिव मोड में आ गई है इस मुद्दे पर पूरे प्रदेश में जहां कांग्रेस प्रेस वार्ता कर प्रदेश की शिवराज सिंह चौहान सरकार को घेरने का प्रयास कर रही है वही उज्जैन के सांसद, मंत्री और भाजपा विधायकों की चुप्पी भाजपा के लिए दुखदाई साबित हो सकती है।

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महाकाल लोक निर्माण में सहायक भुमिका निभाने वाली उज्जैन स्मार्ट सिटी प्रशासन और महाकाल मंदिर प्रबंध समिति के साथ जिला प्रशासन महाकाल लोक को लेकर हुई बदनामी को साफ करने में जुटी हुई है। वही इस पूरे मुद्दे के बाद उज्जैन महापौर मुकेश टटवाल शहर वासियों के बीच मंदिर प्रबंध समिति की छवि सुधारने के लिए पिछले कई सालों से काँग्रेस द्वारा उठाए जा रहे मुद्दे को एक बार फिर से हवा देने में लगे हुए हैं। दरअसल 2016 का सिंहस्थ खत्म होने के बाद महाकाल मंदिर में नित नए प्रयोग किए जा रहे हैं, जिसके तहत सबसे ज्यादा दबाव महाकाल में होने वाली भस्मारती पर रहता है मंदिर प्रबंध समिति के करीब 200 से ज्यादा कर्मचारी इस पूरी व्यवस्था को संभालते हैं लेकिन इसी भस्मारती में सबसे ज्यादा भ्रष्टाचार भी होता है।

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महाकाल मंदिर प्रबंध समिति भस्मारती प्रवेश के नाम पर कई दलालों को पकड़कर महाकाल थाना पुलिस को सुपुर्द कर चुकी है यही नहीं देश-विदेश से आने वाले कई भक्त भी दलालों की शिकायत लेकर मंदिर प्रबंध समिति के पास पहुंचे हैं लेकिन मंदिर प्रबंध समिति उच्च अधिकारियों के दबाव में आकर कोई भी कार्रवाई करने से अपने हाथ हमेशा से बचाती रही है। मंदिर से जुड़े सूत्र बताते हैं की भस्म आरती की दलाली में अधिकतर सत्तापक्ष से जुड़े युवा नेता और महाकाल बीट पर काम करने वाले कई पत्रकार भस्म आरती की दलाली करते हैं । इनमें से युवा नेताओं को मंदिर प्रशासन से जुड़े लोगों ने दलाली करते हुए रंगे हाथों पकड़ा था लेकिन मंदिर समिति के उच्च अधिकारी नेताओं का प्रभाव में इन छुट भैया नेताओं पर कोई कार्यवाही नहीं कर पाए हालांकि कुछ पत्रकारों द्वारा दलाली किए जाने की सूचना जब उनके मालिकों तक पहुंची तो उन्हें अपनी नौकरी से हाथ धोना पड़ा।

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वहीं पिछले दिनों 30 किलोमीटर प्रति घंटे की रफ्तार से चली आंधी के चलते महाकाल लोक में स्थापित की गई सप्तर्षियों की 7 में से 6 मूर्तियां हवा में कागज की तरह उड़कर क्षतिग्रस्त हो गई जिसके बाद महाकाल लोग की छवि को काफी नुकसान हुआ और इस मुद्दे पर कांग्रेस काफी उग्र हो गई और पूरे प्रदेश में विरोध करना शुरू कर दिया जिससे महाकाल लोग की छवि काफी धूमिल हो रही है।

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इस बीच शहर कांग्रेस द्वारा लगातार शहरवासियों के लिए महाकाल दर्शन और भस्मारती के लिए अलग प्रवेश व्यवस्था का प्रस्ताव दिया गया था जिसे महापौर मुकेश टटवाल अपना बताने और श्रेय लेने की होड़ में शामिल हो चुके है, शहर काँग्रेस अध्यक्ष रवि भदौरिया और शहर काँग्रेस के कार्यकारी अध्यक्ष विवेक यादव विक्की ने पहले ही इस मुद्दे पर मंदिर समिति से चर्चा की थी जिस पर मंदिर समिति ने कोई निर्णय नहीं लिया।
वहीं अब श्रेय लेने की राजनीति में महापौर भी कूद पड़े हैं शायद इन्हें भी सांसदी का दिवा स्वप्न आने लगा है जिसके चलते अब टटवाल ज्यादा ही सक्रिय नज़र आने लगे हैं।

गौरतलब है कि राजनीति से इतर उज्जैन शहर वासियों के लिए मंदिर दर्शन और भस्म आरती में प्रवेश को लेकर कई बार विवाद की स्थिति भी उत्पन्न होती रही है। जिसके सुधार के लिए अब नगर के महापौर मुकेश टटवाल ने मंदिर प्रबंध समिति को पत्र लिखकर उज्जैन शहर के निवासियों के लिए भस्म आरती को निशुल्क करने का प्रस्ताव भेजा है। जिसमें शहर के भक्तों के लिए सप्ताह में एक दिन निःशुल्क भस्मारती का प्रस्ताव दिया गया है जिस पर महाकाल मंदिर प्रबंध समिति को निर्णय करना है लेकिन यह सवाल उठ रहा है कि ऐसा क्या हुआ कि महापौर मुकेश टटवाल को शहर के निवासियों की अचानक से चिंता सताने लगी?

दरअसल शहर के हितों के बारे में चर्चा करने के लिए नगर निगम को ही मुख्य एजेंसी माना जाता है ऐसे में शहर के सभी वर्गों से आने वाले पार्षद भी इस मुद्दे को लगातार महापौर टटवाल के सामने रखते रहे हैं वही भाजपा के कई कार्यकर्ता की इस मुद्दे पर लगातार चर्चा करते रहते हैं जिसे लेकर महापौर मुकेश टटवाल ने यह प्रस्ताव बनाकर मंदिर समिति को भेजा है।

गौर करने वाली बात यह है कि इस मुद्दे पर उज्जैन सांसद अनिल फिरोजिया सात बार के विधायक और पूर्व मंत्री रह चुके पारस जैन और प्रदेश के उच्च शिक्षा मंत्री मोहन यादव ने अभी तक कोई ठोस कदम क्यों नहीं उठाया जबकि कांग्रेस महाकाल मंदिर के व्यवसायीकरण के मुद्दे पर भाजपा को हर मुद्दे पर घेरने का प्रयास कर रही है।

विशेष दर्शन शुल्क 250 रुपए, गर्भ ग्रह में प्रवेश 750 रुपए और और भस्मारती शुल्क 200 रुपए को लेकर कांग्रेस हर मुद्दे के साथ महाकाल मंदिर व्यवसायीकरण पर चर्चा करना नहीं छोड़ती ऐसे में सिर्फ महापौर ने ही बीड़ा उठाया है।

जबकि मंदिर प्रबन्ध समिति के प्रशासक संदीप सोनी जिला प्रशासन के उच्च अधिकारियों,धर्मस्व विभाग के आदेशों और इन सब से बढ़कर स्थानीय राजनेताओं के दबाव के आगे पंगु नज़र आते हैं।

राज्य शासन द्वारा वर्ष 1984 में लागू किए गए महाकाल मन्दिर एक्ट के तहत कलेक्टर और मंदिर प्रशासक को कई अधिकार दिए गए हैं लेकिन कलेक्टर और मंदिर प्रशासन मंदिर एक्ट के नियमों का पालन करने के बजाय सरकार और नेताओं के आगे बेबस है।

फिलहाल चुनावी साल में धर्म के नाम पर अपनी राजनीति चमका रहे नेताओं को बाबा महाकाल के नाम पर राजनीति ना करते हुए दर्शन व्यवस्था के लिए एक मंच पर आकर व्यवस्था में बदलाव के लिए जिला प्रशासन और मंदिर समिति से खुले मंच पर चर्चा करनी चाहिए जिससे उज्जैन शहर की जनता को बाबा महाकालेश्वर के सुलभ दर्शन हो सकें ।

जल्द कोई फैसला करेगी। इसके लिए योजना का खाका भी तैयार किया जा रहा है।

 

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