धर्म

Teja Dashami 2023: जानें कौन थे वीर तेजा महाराज, तेजाजी महाराज से जुड़ी एक प्रचलित कथा

तेजाजी को सांपों के देवता, गायों के मुक्तिदाता, कला-बाला के देवता, कृषि कार्यों के दाता के रूप में भी जाना जाता है। मध्य भारत और राजस्थान में हर साल भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की दशमी तिथि को तेजा दशमी पर्व मनाया जाता है।

Teja Dashmi 2023: तेजाजी को सांपों के देवता, गायों के मुक्तिदाता, कला-बाला के देवता, कृषि कार्यों के दाता के रूप में भी जाना जाता है।
मध्य भारत और राजस्थान में हर साल भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की दशमी तिथि को तेजा दशमी पर्व मनाया जाता है। यह पर्व खास तौर पर मध्य प्रदेश, राजस्थान सहित कुछ अन्य राज्यों में मनाया जाता है। इस राज्यों में तेजा दशमी पर मंदिर के आसपास मेले लगते हैं और भक्त तेजा महाराज को रंगे बिरंगे छाते अर्पित करते हैं। धार्मिक मान्यता है कि तेजा महाराज की आराधना करने से सर्पदंश से मौत का भय समाप्त हो जाता है। विशेषकर ग्रामीण अंचलों में तेजा महाराज के भक्तों की संख्या अधिक है।

कौन थे वीर तेजाजी महाराज?

ऐसा माना जाता है कि वीर तेजाजी महाराज का जन्म माघ शुक्ल चतुर्दशी संवत 1130 यानी 29 जनवरी 1074 को नागौर जिले के खरनाल गांव में हुए था। तेजाजी महाराज का जन्म तहरजी और रामकुंवारी नाम के माता-पिता के घर हुआ था, जो एक जाट परिवार थे। तहरजी और रामकुंवारी को लंबे समय तक भी संतान नहीं हुई थी तो उन्होंने भगवान शिव और माता पार्वती की घोर तपस्या की, जिसके बाद घर में तेजाजी का जन्म हुआ। जन्म के समय एक भविष्यवाणी हुई थी जिसमें कहा गया था कि भगवान स्वयं उनके घर में अवतार लेंगे। तेजाजी को सांपों के देवता, गायों के मुक्तिदाता, कला-बाला के देवता, कृषि कार्यों के दाता के रूप में भी जाना जाता है।

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तेजा दशमी मालवा निमाड़ क्षेत्र का प्रमुख त्यौहार है

तेजा दशमी मध्य प्रदेश के मालवा-निमाड़ और राजस्थान के कई इलाकों में धूमधाम से मनाया जाता है। कई स्थानों पर मेले से साथ जुलूस भी निकाला जाता है और भंडारे का भी आयोजन किया जाता है।

तेजाजी महाराज से जुड़ी एक प्रचलित कथा

वीर तेजाजी (Veer Tejaji) के नाम से प्रसिद्ध राजस्थान के लोकदेवता तेजाजी का जन्म राज्स्थान के नागौर जिले में खड़नाल नाम के गांव में हुआ था। उनका जन्म जाट वंश में हुआ था। उनके पिता का नाम ताहड़जी (ताहरजी) और माता का नाम रामकुंवर था। तेजाजी का जन्म माघ माह की शुक्लपक्ष की चतुर्दशी वि.सं. 1130 को यानि 29 जनवरी 1074 को हुआ था। तेजाजी अपने बाल्यकाल से बहुत निर्भीक, वीर, साहसी और वचने के पक्के थे। उनके द्वारा किये जाने वाले आश्चर्यजनक कार्यों और उनके गुणों के कारण उनको लोग अवतारी पुरूष माना करते थे।

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वीर तेजाजी का विवाह राजस्थान राज्य के अजमेर जिले के पनेर नामक स्थान के रायचन्द्र जी की पुत्री पैमलदे (पैमल) के साथ हुआ था। ऐतिहासिक कहानी के अनुसार वीर तेजाजी की एक मुहँबोली बहन थी लाछां गूजरी। एक बार जब वो अपनी मुहँबोली बहन लाछां गूजरी से मिलने गये तो उन्हे ज्ञात हुआ की उसकी गायों को मेर के लोग चुरा कर ले गये हैं। अपनी बहन की सहायता करने के लिये और उसकी गायों को वापस लाने के लिये वीर तेजाजी अपने घोड़े पर सवार होकर मेर के लोगों के पीछे गये।

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मार्ग में भाषक नाम के एक सर्प ने उनका रास्ता रोक लिया। वो नाग तेजाजी को काटना चाहता था। वीर तेजाजी ने उस सर्प को मार्ग से हटने के लिये कहा, परंतु वो नही माना। उसको मार्ग से हटाने के लिये वीर तेजाजी ने उसे वचन दिया कि, हे सर्प देवता! मैं अभी अपनी बहन की गायों को छुड़ाने के लिये जा रहा हूँ। जब मैं उन गायों को मुक्त करा लूंगा, तब मैं स्वयं तुम्हारे पास आ जाऊँगा। तब तुम मुझे ड़स लेना। किंतु तुम मुझे अभी जाने दो। तेजाजी द्वारा दिये गये उस वचन को मानकर उस नाग ने उनका मार्ग छोड़ दिया।

तेजाजी का मेर के लोगों से भीषण संग्राम हुआ। वीर तेजाजी के सामने उन लोगों की एक ना चली और तेजाजी ने उन सभी को मृत्यु के घाट उतार कर उन गायों को उनसे मुक्त कराया। अपनी बहन की गायों को मुक्त कराने के पश्चात्‌ सर्प को दिये अपने वचन को निभाने के लिये वो उस साँप के पास गये। जब तेजाजी उस साँप के पास पहुँचे तो वो बुरी तरह से लहूलुहान हो रखे थे। उनके शरीर पर जगह-जगह घाव हो रखे थे, जिनसे रक्त बह रहा था। तब उस सर्प ने उनसे कहा, तुम्हारा पूरा शरीर घायल हो रखा हैं, सभी घावों से रक्त बह रहा हैं। रक्त से भीगा तुम्हारा शरीर तो अपवित्र हो गया है। अब मैं कहाँ ड़सूँ? तब तेजाजी ने उसे अपनी जिव्हा बताई और कहा, कि मेरी जिव्हा अभी तक सकुशल हैं, तुम यहाँ पर ड़स सकते हो।

वो सर्प वीर तेजाजी की वचनपरायणता को देखकर बहुत प्रसन्न हो गया। उसने उन्हे आशीर्वाद दिया कि अब से जो कोई भी सर्पदंश से पीड़ित व्यक्ति तुम्हारे नाम का धागा बाँधेगा उस पर विष का प्रभाव नही होगा। ऐसा कहकर उस भाषक सर्प ने उनके घोड़े पर चढ़कर उनकी जिव्हा पर ड़स लिया। उस दिन भाद्रपद माह की शुक्लपक्ष की दशमी थी। इसलिये तभी से इस दिन तेजा दशमी (Teja Dashmi) मनाई जाती हैं। ऐसी लोक मान्यता है कि सर्पदंश के स्थान पर तेजाजी के नाम का धागा (तांती) बाँधने से सर्पदंश से पीड़ित पशु या मनुष्य पर साँप के विष का प्रभाव नही होता। और वो जल्द ही स्वस्थ हो जाता हैं।

तेजा दशमी का त्यौहार लोगों की श्रद्धा, भक्ति के साथ उनकी आस्था और विश्वास का प्रतीक हैं। तेजा दशमी से एक दिन पहले नौमी को पूरी रात जागरण का आयोजन किया जाता हैं। वीर तेजाजी के थान एवं मंदिरों पर मेलें लगते हैं। बड़ी संख्या में श्रद्दालु तेजाजी के मंदिरों पर जाते हैं। वहाँ पर पीड़ितों का धागा खोला जाता हैं। तेजा जी की प्रसादी और भंड़ारा होता हैं।


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