देश-विदेश

IPC, CRPC और भारतीय साक्ष्य विधेयक में हुए यह बदलाव

सरकार के नए बिल में जोड़े कई नए प्रावधान

भगोड़ों की अनुपस्थिति में भी होगा ट्रायल

देशद्रोह कानून ‘खत्म’, लिंचिंग पर फांसी

IPC-CRPC के ‘भारतीयकरण’ से क्या-क्या बदलेगा?

केंद्र की मोदी सरकार ने संसद के मॉनसून सत्र के आखिरी दिन 11 अगस्त को संसद में तीन नए बिल पेश किए. इन बिलों का मकसद अंग्रेजों के जमाने में बनाए गए आपराधिक कानून में बदलाव करना है. देशद्रोह कानून को भी ‘खत्म’ किया जाएगा और मॉब लिंचिंग मामले में मौत की सजा दी जाएगी. फिलहाल, इन तीनों नए बिलों को समीक्षा के लिए स्थायी समिति के पास भेज दिया गया है. लेकिन, सवाल है कि आखिर इसकी जरूरत क्यों पड़ी? इसमें किस तरह के बदलाव किए गए हैं? कौन से नए कानून डाले गए हैं और कौन से पुराने कानूनों को हटाया गया है?

1860 की भारतीय दंड संहिता (Indian Penal Code) की जगह भारतीय न्याय संहिता लेगी. दंड प्रक्रिया संहिता (Code of Criminal Procedure) का स्थान भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता को दिया जाएगा और भारतीय साक्ष्य अधिनियम (Indian Evidence Act) की जगह भारतीय साक्ष्य विधेयक लेगी.

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सरकार ने कौन-कौन से तीन बिल सदन में पेश किए?

भारतीय न्याय संहिता, 2023 (IPC-1860 में बदलाव के लिए)

भारतीय नागरिक संहिता, 2023 (CrPC 1898 में बदलाव के लिए)

CREATIVE FILMS INDORE PHOTOGRAPHY

भारतीय साक्ष्य विधेयक, 2023 (इंडियन एविडेंस एक्ट, 1872 में बदलाव के लिए)

इन तीन नए बिलों की जरूरत क्यों?

लोकसभा में बोलते हुए केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने कहा कि “1860 से 2023 तक देश की आपराधिक न्याय प्रणाली अंग्रेजों द्वारा बनाए गए कानूनों के अनुसार कार्य करती रही. अब अंग्रेजों के समय से चले आ रहे तीनों कानून बदल जाएंगे और देश में आपराधिक न्याय प्रणाली में बड़ा बदलाव होगा. इन तीनों कानूनों में कई ब्रिटिश शब्दावली हैं, जैसे ‘लंदन गैजेट’, ‘कॉमनवेल्थ प्रस्ताव’, ‘ब्रिटिश क्राउन’, ऐसे 475 जगहों से ऐसे शब्दों को खत्म कर दिया गया है.”

इस बिलों को बारे में अमित शाह ने कहा कि ’18 राज्यों, छह केंद्र शासित प्रदेशों, भारत की सुप्रीम कोर्ट, 22 हाईकोर्ट, न्यायिक संस्थाओं, 142 सासंद और 270 विधायकों के अलावा जनता ने भी इन विधेयकों को लेकर सुझाव दिए हैं. चार साल तक इस पर काफी चर्चा हुई है. हमने इस पर 158 बैठकें की हैं. इस दौरान उन्होंने कहा कि अब इन तीन नए कानूनों से देश की आपराधिक न्याय व्यवस्था में बड़ा बदलाव आएगा. इस विधेयक के तहत हमने लक्ष्य तय किया है कि दोषसिद्धि की दर को 90 प्रतिशत से ज्यादा किया जाएगा.

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CRPC में क्या बदलाव?

केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने सदन को बताया कि CRPC में बदलाव कर जो भारतीय नागरिक संहिता, 2023 बनेगी, उसमें अब 533 धाराएं बचेंगी, 160 धाराओं को बदल दिया गया है. बिल में 9 नई धाराएं जोड़ी गई हैं और 9 धाराओं को खत्म किया गया है.

IPC में क्या बदलाव?

गृहमंत्री ने IPC में बदलाव को लेकर कहा कि IPC में पहले 511 धाराएं थीं. अब भारतीय न्याय संहिता, 2023 में सिर्फ 356 धाराएं होंगी. 175 धाराओं में बदलाव हुआ है, 8 नई धाराएं जोड़ी गई हैं और 22 धाराओं को खत्म कर दिया गया है

इंडियन एविडेंस एक्ट में क्या बदलाव?

अमित शाह ने बताया कि पहले इंडियन एविडेंस एक्ट में 167 धाराएं थी. लेकिन, अब भारतीय साक्ष्य विधेयक, 2023 में 170 धाराएं होंगी. इसके लिए 23 धाराओं में बदलाव किया गया. एक नई धारा जोड़ी गई है और 5 धाराएं निरस्त की गई हैं.

इसके अलावा जो बड़ा बदलाव आया है, उसमें देशद्रोह कानून को खत्म किया गया है और मॉब लिंचिंग के मामले में मौत की सजा का प्रावधान किया गया है.
देशद्रोह कानून को ‘खत्म’ किया जाएगा

सरकार द्वारा सदन में पेश किए गए इस बिल से देशद्रोह कानून की धारा 124 (A) को हटा दिया गया है. इसकी जगह अब धारा 150 कर दिया गया है.

भारतीय न्याय संहिता, 2023 में धारा 150 की क्या परिभाषा है? “कोई भी, इरादतन या जान-बूझकर, बोले या लिखे गए शब्दों से, या संकेतों से, या कुछ दिखाकर, या इलेक्ट्रॉनिक संदेश से या वित्तीय साधनों के उपयोग से, या अन्यथा, अलगाव को या सशस्त्र विद्रोह को या विध्वंसक गतिविधियों को, या अलगाववादी गतिविधियों की भावनाओं को उकसाता है या उकसाने का प्रयास करता है, या भारत की संप्रभुता या एकता और अखंडता को खतरे में डालता है, या ऐसे किसी भी कार्य में शामिल होता है या करता है, उसे आजीवन कारावास या कारावास की सजा दी जाएगी, जिसे सात साल तक बढ़ाया जा सकता है और जुर्माना भी लगाया जा सकता है…”

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मॉब लिंचिंग के लिए मौत की सजा

नए विधेयक में मॉब लिंचिंग को हत्या की परिभाषा में जोड़ा गया है. जब 5 या 5 से अधिक लोगों का एक समूह एक साथ मिलकर नस्ल, जाति या समुदाय, लिंग, जन्म स्थान, भाषा, व्यक्तिगत विश्वास या किसी अन्य आधार पर हत्या करता है, तो ऐसे समूह के हर सदस्य को मौत या कारावास से दंडित किया जाएगा. इसमें न्यूनतम सजा 7 साल और अधिकतम मौत की सजा का प्रावधान किया गया है. इसके अलावा जुर्माना भी लगाया जाएगा.

नाबालिग से दुष्कर्म पर मौत की सजा

नए बिल में महिलाओं और बच्चों के विरुद्ध अपराधों में सजा को प्राथमिकता दी गई है. अमित शाह ने बताया कि नए कानूनों में हमने महिलाओं के प्रति अपराध और सामाजिक समस्याओं के निपटान के लिए ढेर सारे प्रावधान किए हैं. गैंग रेप के सभी मामलों में 20 साल की सजा या आजीवन कारावास का प्रावधान किया गया है, 18 साल से कम आयु की बच्चियों के मामले में मृत्युदंड का प्रावधान भी किया गया है.

रेप के कानून में एक नया प्रावधान शामिल किया गया है जो परिभाषित करता है कि विरोध न करने का मतलब सहमति नहीं है. इसके अलावा गलत पहचान बताकर यौन संबंध बनाने वाले को अपराध की श्रेणी में रखा गया है.

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हेट स्पीच पर 5 साल की सजा

नए कानूनों में हेट स्पीच और धार्मिक भड़काऊ स्पीच को भी अपराध की श्रेणी में शामिल किया गया है. अगर कोई व्यक्ति हेट स्पीच देता है, तो ऐसे मामले में तीन साल की सजा और जुर्माने का प्रावधान किया गया है. इसके अलावा कोई धार्मिक आयोजन कर किसी वर्ग, श्रेणी या अन्य धर्म के खिलाफ भड़काऊ स्पीच दी जाती है, तो 5 साल की सजा का प्रावधान होगा.

अमित शाह ने बताया कि नए कानून बनने से 533 धाराएं खत्म होंगी. 133 नई धारा शामिल की गई हैं. जबकि 9 धारा को बदल दिया गया है. इलेक्ट्रॉनिक, डिजिटल, एसएमएस, लोकेशन साक्ष्य, ईमेल आदि सबकी कानूनी वैधता होगी.

और क्या बदला?

भगोड़ों की अनुपस्थिति में भी ट्रायल होगा और सजा सुनाई जाएगी.

मौत की सजा पाने वाले की सजा को आजीवन में बदला जा सकता है, लेकिन दोषी किसी भी तरह छोड़ा नहीं जायेगा. कानून में टेररिज्म की व्याख्या जोड़ी गई है.

सरकारी कर्मचारी के खिलाफ अगर कोई मामला दर्ज होता है तो 120 दिनों के केस चलाने की अनुमति देनी जरूरी है.

दोषियों की संपत्ति कुर्क करने का आदेश कोर्ट देगा ना कि पुलिस अधिकारी.

2027 तक सभी कोर्ट ऑनलाइन होंगी.

जीरो FIR कहीं से भी रजिस्टर की जा सकती है.

अगर किसी को भी गिरफ्तार किया जाता है, तो उसके परिवार को तुरंत सूचित करना होगा. जांच 180 दिन में समाप्त कर ट्रायल के लिए भेजना होगा.

पुलिस अधिकारियों के खिलाफ ट्रायल चलाने का फैसला सरकार को 120 दिन में करना होगा.

किसी मामले में बहस पूरी होने के बाद एक महीने के भीतर कोर्ट को फैसला सुनाना होगा. 7 दिन के भीतर उस फैसले को ऑनलाइन उपलब्ध कराना होगा.

किसी भी मामले में 90 दिन के भीतर चार्जशीट फाइल करनी पड़ेगी. कोर्ट की मंजूरी से और 90 दिन का समय मिल सकता है.

यौन हिंसा में पीड़िता का बयान और बयान की वीडियो रिकॉर्डिंग अनिवार्य.

जिन मामलों में सात साल या उससे ज्यादा की सजा है, वैसे केस में क्राइम सीन पर फॉरेंसिक टीम का जाना अनिवार्य होगा.

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